×







We sell 100% Genuine & New Books only!

Prayojanmoolak Hindi Aur Patrakarita 2023 Edition at Meripustak

Prayojanmoolak Hindi Aur Patrakarita 2023 Edition by Dr. Dinesh Prasad Singh, Vani Prakashan

Books from same Author: Dr. Dinesh Prasad Singh

Books from same Publisher: Vani Prakashan

Related Category: Author List / Publisher List


  • Price: ₹ 399.00/- [ 2.00% off ]

    Seller Price: ₹ 391.00

Estimated Delivery Time : 4-5 Business Days

Sold By: Meripustak      Click for Bulk Order

Free Shipping (for orders above ₹ 499) *T&C apply.

In Stock

We deliver across all postal codes in India

Orders Outside India


Add To Cart


Outside India Order Estimated Delivery Time
7-10 Business Days


  • We Deliver Across 100+ Countries

  • MeriPustak’s Books are 100% New & Original
  • General Information  
    Author(s)Dr. Dinesh Prasad Singh
    PublisherVani Prakashan
    Edition3rd Edition
    ISBN9788181436634
    BindingPaperback
    LanguageHindi
    Publish YearJanuary 2023

    Description

    Vani Prakashan Prayojanmoolak Hindi Aur Patrakarita 2023 Edition by Dr. Dinesh Prasad Singh

    भाषा की समस्या एक वास्तविक सामाजिक समस्या है, जो किसी-न-किसी रूप में सामाजिक व्यवहार, सांस्कृतिक चेतना और शैक्षिक ढाँचे आदि की विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी होती है। ये सभी समस्याएँ समुदाय की मानसिक स्थिति और उन विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी रहती हैं, जिनको पारस्परिक आदान-प्रदान के लिए उसके सदस्यों को विभिन्न सामाजिक सन्दर्भों में निभाना होता है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे समाज की बौद्धिक चेतना एवं सामाजिक सन्दर्भों में काफ़ी परिवर्तन आया है और इस समय सामान्य व्यक्ति उपयुक्त शिक्षा-प्रणाली के अभाव में एक तनाव का अनुभव कर रहा है। हमारे सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों में अंग्रेज़ी का व्यवहार धीरे-धीरे हट रहा है। इसलिए अंग्रेज़ी तथा अन्य भारतीय प्रादेशिक भाषाओं के सम्बन्धों के लिए आयाम और हिन्दी- व्यवहार के नये सन्दर्भ उभर रहे हैं। इसलिए एक गुरुतर दायित्यबोध के साथ हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि हम एक और व्यापक सम्प्रेषण के रूप में अखिल भारतीय हिन्दी की शैली और उसके भाषापरक प्रभेदक लक्षणों को निर्धारित करें तो दूसरी ओर सामाजिक व्यवहार के उन सीमित क्षेत्रों की भाषा के रूप में उसे विकसित करने का प्रयास करें, जिसमें अब तक अंग्रेज़ी का प्रयोग होता रहा है। इसके साथ ही हिन्दी को संघ की 'राजभाषा' के रूप में प्रतिष्ठित करना है और यह तभी सम्भव है, जब 'सहयोगी' भाषा के रूप में अहिन्दी भाषी क्षेत्र में इसका व्यापक प्रसार हो । आधुनिक विचारों को व्यक्त करनेवाली भाषा के रूप में हिन्दी को विकसित करने के साथ-साथ इसे भारत की सामासिक संस्कृति का समर्थ संवाहक माध्यम बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा इसे विभिन्न व्यवसायों तथा काम-धन्धों के लिए सेवा-माध्यम के रूप में भी विकसित करना है।



    Book Successfully Added To Your Cart