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Rasimrathi Ek Punha Path at Meripustak

Rasimrathi Ek Punha Path by Dinesh Kumar, Vani Prakashan

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  • General Information  
    Author(s)Dinesh Kumar
    PublisherVani Prakashan
    ISBN9789390678723
    Pages238
    BindingPaperback
    LanguageHindi
    Publish YearJanuary 2021

    Description

    Vani Prakashan Rasimrathi Ek Punha Path by Dinesh Kumar

    दिनकर वैसे तो हिन्दी में ‘छायावादोत्तर काल’ के महत्त्वपूर्ण कवि के तौर पर प्रतिष्ठित और स्वीकृत हैं, किन्तु उनका रचनात्मक व्यक्तित्व इस तरह के साहित्यिक काल-विभाजन की सीमाओं का अतिक्रमण करने वाला है। उनकी रचनात्मक यात्रा छायावादी युग से शुरू होकर आज़ादी के दो दशक बाद तक अनवरत जारी रही। इस दौरान ‘प्रगतिवाद’, ‘प्रयोगवाद’, ‘नयी कविता’ और ‘अकविता’ जैसे अनेक काव्य-आन्दोलनों के वे साक्षी रहे। इन काव्य-आन्दोलनों के तुमुल कोलाहल के बीच उनका कवि-व्यक्तित्व इस अर्थ में चकित करने वाला है कि वे किसी काव्य-आन्दोलन की गिरफ़्त में आये बिना अपने बनाये स्वतन्त्र काव्य-मार्ग पर चलते रहे। आश्चर्य इस बात का भी है कि अलग राह पर चलते हुए वे कभी अप्रासंगिक नहीं हुए। उन्होंने हर दौर में उत्कृष्ट रचनाएँ रचीं। इन रचनाओं ने लोकप्रियता के नये कीर्तिमान स्थापित किये। इस प्रसंग में ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’ और ‘उर्वशी’ को सहज ही याद किया जा सकता है। आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यधारा के काव्य-आन्दोलनों के समानान्तर दिनकर अपनी कृतियों के साथ ‘सूर्य’ की तरह चमक रहे हैं। समय के साथ-साथ काव्य-आन्दोलनों की चमक तो फ़ीकी पड़ जाती है, पर दिनकर का तेज कम नहीं होता है।दिनकर की प्रबन्ध-कृतियों में सर्वाधिक लोकप्रियता ‘रश्मिरथी’ को मिली। दिनकर ने इस कृति में कर्ण के नायकत्व के माध्यम से जाति आधारित श्रेष्ठता को भी गम्भीर रूप से प्रश्नांकित किया था। ‘रश्मिरती’ के द्वारा दिनकर ने एक तरह से हिन्दी कविता में व्याप्त सवर्णवादी भाव-बोध और अभिरूचि को चुनौती दी थी। ‘रश्मिरथी’ को आज विविध आयामों से देखने-समझने की जरूरत है। ‘रश्मिरथी : एक पुनःपाठ’ इसी दिशा में एक गम्भीर प्रयास है। यह ‘रश्मिरथी’ जैसी लोकप्रियता कृति पर गम्भीर विमर्श की पुस्तक है।



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