×







We sell 100% Genuine & New Books only!

Patrakarita Ka andha Yug at Meripustak

Patrakarita Ka andha Yug by  Anand Swaroop Verma, Setu Prakashan Pvt Ltd

Books from same Author:  Anand Swaroop Verma

Books from same Publisher: Setu Prakashan Pvt Ltd

Related Category: Author List / Publisher List


  • Price: ₹ 280.00/- [ 0.00% off ]

    Seller Price: ₹ 280.00

Estimated Delivery Time : 4-5 Business Days

Sold By: Meripustak      Click for Bulk Order

Free Shipping (for orders above ₹ 499) *T&C apply.

In Stock

We deliver across all postal codes in India

Orders Outside India


Add To Cart


Outside India Order Estimated Delivery Time
7-10 Business Days


  • We Deliver Across 100+ Countries

  • MeriPustak’s Books are 100% New & Original
  • General Information  
    Author(s) Anand Swaroop Verma
    PublisherSetu Prakashan Pvt Ltd
    ISBN9789389830064
    Pages280
    BindingPaperback
    LanguageHindi
    Publish YearJanuary 2020

    Description

    Setu Prakashan Pvt Ltd Patrakarita Ka andha Yug by  Anand Swaroop Verma

    पत्रकारिता, खासतौर पर हिंदी पत्रकारिता, आज जिस भीषण दौर से गुजर रही है वह अकल्पनीय है। समूचे मीडिया पर कॉरपोरेट ताकतों का कब्जा हो गया है और सत्ता के साथ उनका तालमेल स्थाई बनाए रखने की कोशिश में मीडिया ने जनता के पक्ष को पूरी तरह दरकिनार कर दिया है। धर्म के आधार पर सत्ताधारी पार्टी जिस तरह के ध्रुवीकरण में लगी है उसमें उसके पक्ष में जनमत तैयार करने में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सारी हदें तोड़ दी हैं। कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका पर निगरानी रखने के उद्देश्य से निर्मित यह चौथा स्तंभ आज इतना बेलगाम हो गया है कि अब इस पर निगरानी रखने के लिए किसी और ‘स्तंभ’ की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों की तस्वीर देखें तो मीडिया ने धर्माधता, अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुसलमानों के प्रति नफरत तथा पाकिस्तान के संदर्भ में युद्धोन्माद फैलाने, भ्रामक सूचनाओं और अंधराष्ट्रवाद के जरिए समाज के एक तबके को पागल भीड़ में तब्दील करने और दलितों, महिलाओं तथा वंचित तबकों को और भी ज्यादा हाशिये पर ठेलने में सत्ताधारी पार्टी को मदद पहुँचायी है। इसका सबसे खतरनाक पहलू निरंतर बढ़ रही सांप्रदायिकता में दिखाई दे रहा है। इस संकलन के लेखक का मानना है कि आज जो स्थिति सामने है, वह आकस्मिक नहीं है बल्कि उन प्रवृत्तियों की परिणति है जो 1980 के दशक से ही मीडिया में प्रकट हो गयी थीं। आश्चर्य नहीं कि लेखक ने 1984 में ही हिंदी पत्रकारिता के ‘हिंदू पत्रकारिता’ में तब्दील हो रहे खतरे की तरफ संकेत किया था।



    Book Successfully Added To Your Cart