Description
Vikas Publishing House Lok Vitt, 4/E by Dr H L Bhatia
इस पुस्तक का लेखन लोक वित्त के बढ़ते शैक्षिक और व्यावहारिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए 1998 में किया गया था। पिछले बीस वर्षों में यह इतनी लोकप्रिय हो गई कि नवीन सिद्धांतों एवं परिणाम बजटिंग के बदलते परिवेश में इसके नवीकरण और परिशोधन की आवश्यकता हुई। इस चतुर्थ संस्करण में नवीनतम आँकड़ों, रिपोर्टों तथा बजट प्रलेखों के साथ सभी अध्यायों का पुनर्लेखन किया गया है।
पुस्तक की भाषा सरल, स्पष्ट एवं रोचक रखने के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि इसकी पाठ्य-सामग्री भारतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों के अनुकूल हो और व्यावसायिक एवं प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं में भाग लेने वालों, तथा जनसाधारण के लिए भी प्रत्येक प्रकार से उपयोगी हो। कठिन सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक व्यवस्थाओं और पद्धतियों के मूल तत्त्वों को उभारने का कार्य तथा उनकी व्याख्या में प्रयुक्त उदाहरणों का चुनाव यथासंभव भारतीय परिस्थितियों से किया गया है। पुस्तक में लोक वित्त के सिद्धांतों के अतिरिक्त भारतीय लोक वित्त की स्थिति एवं समस्याओं तथा उनके संभावित समाधानों की व्याख्या को इस ढंग से प्रस्तुत किया गया है कि पाठकगण अपनी आवश्यकतानुसार लाभान्वित हो सकें। हर अध्याय के अंत में हिंदी-अंग्रेज़ी शब्दावली और अभ्यास प्रश्न भी हैं।
यह पुस्तक संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के लिए भी अत्यंत उत्तम है।